सोमवार, 20 जुलाई 2009

काव्य बिम्बों ने किया संवेदनाओं से संवाद


जीवन के अनुभव की संवेदनाएं जब शब्दों के सौन्दर्य में मुखरित होती है तो हर अक्षर व्यक्ति से संवाद करता है। सोमवार को एलआईसी परिसर स्थित एमडीआईईए सभागार में कुछ ऐसी ही काव्य संवेदनाओं ने लोगों के मर्म को कुरेदा। मौका था मुजफ्फरपुर थियेटर एसोसिएशन की ओर से बक्सर से आये सुप्रसिद्ध कवि-गीतकार कुमार नयन के गजल पाठ का। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एसोसिएशन के अध्यक्ष एम. अखलाक ने कवि का परिचय श्रोताओं से कराया। उसके बाद श्री नयन ने ग्र्राम्य संवेदना के अलावा जीवन की व्यापकता को अनेक संदर्भों में समेटते हुए कई गजलें सुनायीं। इन गजलों में 'खौलते पानी में डाला जायेगा, यूं हमें धोया खंगाला जाएगा...', 'चूल्हे पे तन्हा बैठी धुंआती हुई सी मां, रोटी के साथ खुद को पकाती हुई सी मां', 'वफा की हर मिसाल जिन्दा रख, तू इश्क का ख्याल जिन्दा रख', 'मुख्तलिफ लोगों से मिलना उम्र भर अच्छा लगा, मुझको सचमुच मेरा होना दर-ब-दर अच्छा लगा', 'अंधेरी रात के तारों में ढूंढना मुझको, मिलूंगा दर्द के रातों में ढ़ूढऩा मुझको' विशेष रूप से सराही गई।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे डा. संजय पंकज ने श्री नयन की गजलों को बड़े आयाम की रचना बताते हुए उनकी रचनाधर्मिता को संवेदना का विस्तार बताया। अली अहमद मंजर ने कहा कि श्री नयन ने अलग-अलग आयामों की गजल सुनाकर अपनी व्यापक सोच का परिचय दिया है। पत्रकार संजय झा ने इन गजलों को आम आदमी की लड़ाई का हिस्सा बनने वाली रचना बताया। श्री नयन की विशेष प्रस्तुति के बाद एमआर चिश्ती ने 'मैं गांव का रहने वाला हूं सच बोल रहा हूं' गजल सुनाकर लोगों को मुग्ध कर दिया। ताजीम अहमद गौहर की पंक्तियां 'नहीं होता दुखों का कई मौसम, हवा बेवक्त भी चलती बहुत है' को भी श्रोताओं से काफी सराहना मिली। वहीं डा. पुष्पा गुप्ता के गीत 'अब जाने के दिन और करीब आ गये भी' काफी पसंद की गयी। इसके अलावा मीनाक्षी मीनल की कविता 'सबको नहीं चाहिए बहने वाली गंगा', श्यामल श्रीवास्तव की 'दादू की छड़ी' एवं प्रभाकर तिवारी की 'सूरज तपता' ने भी श्रोताओं को काफी प्रभावित किया।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस रिपोर्ट का.