शनिवार, 27 जून 2009

शुक्रगुलजार व शनिबहार के लिए आवेदनों का टोटा

सूबे की कला संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से आयोजित होने वाले प्रमंडल स्तरीय शुक्रगुलजार और शनिबहार कार्यक्रम के शुभारंभ में एक महीने से भी कम दिन रह गये हैं, लेकिन तिरहुत प्रमंडल के प्रतिष्ठित कलाकार और संगीतकार इसके प्रति उदासीन बने हुए हैं। आलम यह है कि कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रमंडलीय सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में तिरहुत के विभिन्न जिलों से अबतक सिर्फ 6 आवेदन ही पहुंच पाये हैं। कार्यक्रम की शुभारंभ तिथि 24 व 25 जुलाई तय है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रगुलजार कार्यक्रम में दो समूहों का एक-एक घंटे का कार्यक्रम किया जाना है। जिसमें एक समूह शास्त्रीय गायन, उपशास्त्रीय गायन, लोकगीत, लोकगाथा, सुगम संगीत आदि विधाओं में से एक विधा प्रस्तुत करेंगे। वहीं दूसरे समूह को लोकनृत्य, नाटक एवं शास्त्रीय नृत्य विधाओं में से एक विधा की प्रस्तुति का अवसर मिलेगा।
इसी तरह शनिबहार के कार्यक्रम में भी तीन समूहों के कार्यक्रम 45-45 मिनट की अवधि में प्रस्तुत किये जायेंगे। जिसमें एक समूह द्वारा किसी भी वाद्य का वादन, दूसरा समूह लोक नृत्य, नाटक या नृत्य नाटिका व तीसरा समूह शास्त्रीय नृत्य, शास्त्रीय या उपशास्त्रीय गायन, सुगम संगीत या लोकगाथा में किसी एक विधा की प्रस्तुति करेगा। इसके लिए सभी कलाकारों को कला संस्कृति विभाग की ओर से मानदेय भी दिया जायेगा।


कलाकारों को जागरूक करेगा प्रशासन : गुप्ता
शुक्रगुलजार एवं शनिबहार कार्यक्रम की सफलता के लिए जिला प्रशासन कलाकारों के बीच जागरूकता अभियान चलायेगा। इसके तहत प्रतिष्ठित व नवोदित कलाकारों को कार्यक्रम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। कार्यक्रम के लिए जिले के नोडल पदाधिकारी बनाये गये डीपीआरओ एनके गुप्ता कहते हैं कि कलाकारों की सूची उपलब्ध कराने के लिए अन्य जिलो के डीपीआरओ को पत्र भेजा गया है। वहीं जिला प्रशासन के तहत जगह-जगह कार्यक्रम से संबंधित फ्लैक्श भी लगवाये जायेंगे। कलाकारों से प्राप्त आवेदनों को सूचीबद्ध किया जा रहा है।

बुधवार, 10 जून 2009

बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे संस्कृति कर्मी

अघोषित सांस्कृतिक राजधानी मुजफ्फरपुर का संस्कृतिकर्म संकट में है। कला चेतना व कला रूझान के बावजूद कलाकारों की संवेदना नाट्य प्रस्तुतियों में आकार नहीं ले पा रही है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कला प्रदर्शन टेढी खीर साबित हो रहा है। कला प्रदर्शन के लिए भवन किराये से लेकर अन्य जरूरी सामाग्रियों का खर्च वहन करना संस्थाओं के लिए पहाड़ जैसा प्रतीत होता है। इसके अलावा नाटक मंचन के लिए उपयुक्त लाइट व साउंड का शहर में उपलब्ध नहीं होना भी एक बड़ी समस्या है। सरकारी प्रयासों की बात करें तो पिछले कई दशकों से सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भी कोई प्रयास नहीं किये गये। सबसे दुखद यह है कि सांस्कृतिक चेतना को जगाने वाले इस शहर में न तो कोई प्रेक्षागृह हैं और ना ही कला केन्द्र। करीब 14 साल पहले कलाकारों के आंदोलन पर जनसहयोग से बनाये गये आम्रपाली आडिटोरियम भी कलाकारों के लिए नहीं रहा। इस पर नगर निगम ने अवैध रूप से कब्जा जमा रखा है। यह इसके लिए पैसा उगाही का साधन बन गया है। पिछले दिनों मुजफ्फरपुर थियेटर एसोसिएशन के बैनर तले कलाकारों के आंदोलन किया तो डीएम की पहल पर आडिटोरियम देने का फैसला निगम बोर्ड ने लिया। कुछ नाटकों के मंचन के लिए यह मिला भी, लेकिन तमाम नियमों को ताक पर रखकर सशक्त स्थायी समिति ने इस पर रोक लगा दिया है। एसोसिएशन का कहना है कि सशक्त स्थायी समिति के अधिकारी रिश्वत की मांग कर रहे हैं। उधर, कला संस्कृति मंत्री रेणु देवी ने भी नि:शुल्क आडिटोरियम दिलाने का वादा किया था, लेकिन कागजी साबित हुआ। थियेटर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष सह सुप्रसिद्ध नाटय निर्देशक स्वाधीन दास वर्ष 1960 से 1985 तक शहर की नाटय कला का समृद्धि का दौर बताते हैं। वे कहते हैं कि उस अंतराल में भी सांस्कृतिक आयोजनों के लिए सरकारी स्तर पर कोई सहयोग नहीं मिला करता था। लेकिन वीणा कंसर्ट और चतुरंग नाट्य संस्थाओं के पास नाटकों के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध थी। उस दौरान नाटकों की प्रस्तुति खूब हुआ करती थी। सुप्रसिद्ध रंगकर्मी यादवचंद्र पांडेय, सागर दास गुप्ता व बी.प्रशांत सहित कई राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कलाकारों ने इसी शहर को अपनी कला साधना का क्षेत्र बनाया था। परंतु बदलते समय में कुछ कलाकारों के नहीं रहने व वीणा कंसर्ट के व्यवसायिक उपयोग से नाट्य प्रदर्शनों पर असर पड़ा है। श्री दास कहते हैं कि इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि कलाकार मेहनत कर नाटकों को तैयार करते हैं, परंतु प्रस्तुति की समस्या आड़े आ जाती है।